शनिवार, 25 जून 2022

डायरी का आख़री पन्ना


 

जब भी मन दौड़ता था इधर उधर

कुछ लिख लेता था डायरी के आख़री पन्ने पे

कभी अपना नाम, कभी कोई तस्वीर

या फिर कुछ लकीरें आड़ी तिरछी 


कभी सोचा नही था की क्या लिख रहा हूं

आज जब पलट के देखता हूं तो अफ़सोस होता है

की क्यूँ नही संभाले वो पन्ने.. 


उसमे मेरा बचपन था..

क्लास में पीछे बैठ कर दोस्तों संग खेल था

टीचर की कार्टून थी, पॉकेट मनी का हिसाब था

ओर बहुत से सवालों का जवाब था..

उसमे मेरा बचपन था.. 


आने वाले दिनों के सपने थे..

दूर थे लेकिन फिर अभी अपने थे

पा ही लिए थे वो सपने जो लिखें थे पन्नों में

अब ढूंढ़ने पर भी नही मिलते अपनों में 


पन्ने भर जाने पर अक्सर फाड़ के फेंक दिया करता 

काश कही दिल के कोने में इसे गाड़ दिया होता 

कम से कम पलट के देख तो लेता कि लिखा क्या है..

उसे मिटा के सही कर देता जो गलत हुआ है



आजकल शुरुआत ही पहले पन्ने से होती है

सब कुछ ऑनलाइन स्मार्ट बनने से होती है 

मौका ही कहाँ है कि rough में कुछ लिख लें

ओर बाद में ज़िन्दगी को fair कर लें 


ना जाने वो डायरी अब कहाँ होगी..

उस आख़री पन्ने की हकीकत क्या होगी

पड़ा होगा किसी कोने में अकेला सा तन्हा 

पूरी ज़िन्दगी समेटे हुए था वो डायरी का आख़री पन्ना 






बुधवार, 10 नवंबर 2021

आओ मन से मन की बात करें


 आओ मन से मन की बात करें

कुछ तुम करो, कुछ हम करें
आओ मन से मन की बात करें!

मन की भाषा पढ़ ले, और
मन से भाषा समझा दें
निशब्द निर्विचार मन को
अंतर्मन से साँझा करें
आओ मन से मन की बात करें!

अविरल,अविमुक्त,अविकार मन
नित्य निश्चल नियत को खोजे
जीवन रुपी इस भूल भुलईया में
मन से ही मन को भूजें
आओ मन से मन की बात करें!

अधर से नयन से, बात अधूरी होंगी
मन की बात तो मन से ही पूरी होगी
अलमस्त चपल मन की आज यहीं रात करें
आओ मन से मन की बात करें!



सोमवार, 9 अगस्त 2021

अब्बू आते होंगे अभी



दरवाज़ा खुला रहने दो अम्मी,

ब्बू आते होंगे अभी..

मेरे खिलौने, मेरी गुड़िया बिस्तर पर पड़ी है
अलमारी में इनको संभाल दूँ सभी

खाना बना लिया है, बिखरा घर संवार दिया है,
आज तो पहले से ही होम वर्क कर लिया है..
कहीं दस्तक न आ जाये अभी,

किस से लड़ी, किस से झगड़ी, कितना पढ़ी
कब अम्मी ने चोरी पकड़ी..
पूरे दिन में क्या किया..
अभी तो कुछ बताया भी नही

कैसे खेलूं तुम संग चोर सिपाही
किस से सुनूं परियों के किस्से
ना टॉफ़ी, ना चॉकलेट, ना आइसक्रीम..
कुछ ना आया मेरे हिस्से!

सपनों में पक्का आ जाना
एक छोटी लोरी सुना जाना
मैं शायद सो जाऊँ तभी
दरवाज़ा खुला रहने दो अम्मी,
अब्बू आते होंगे अभी..

रविवार, 17 जून 2018

हमको तुमसे प्यार नहीं




दिन ढलते ही, तुम ही तो याद आते हो,
बारिश की पहली बूँद में, तुम ही तो नहाते हो !
नींद के पहले सपने में तुम ही तो आते हो
फिर भी तुम कहते हो की... हमको तुमसे प्यार नहीं !!

खाली खाली शाम जिसे तलाशे,
पत्थर में भी आंखें जिसे तराशे !
तुम ही तो वो दिल जसे पुकारे,
फिर भी तुम कहते हो की... हमको तुमसे प्यार नहीं !!

कितने लम्हे बीत गए समझने में,
दिन रात बीत गए सुलझने में !
क्या खोया- क्या पाया इस रूठने मनाने में
फिर भी तुम कहते हो की... हमको तुमसे प्यार नहीं !!

कब वक़्त गुज़रा, कब उम्र गुज़री...याद नहीं,
कब तुम्हारी आंखों में डूबा... याद नहीं !
कैसे जिया कैसे साँसे ली.. याद नहीं
फिर भी तुम कहते हो की... हमको तुमसे प्यार नहीं !!

मंगलवार, 21 नवंबर 2017

ये खिड़कियाँ !!



इन पुरानी दीवारों से झांकती ये खिड़कियाँ
कुछ पुराने किस्से सुनाती ये खिड़कियाँ

मस्जिद की अज़ान सुनाती, मंदिर की आरतियां दिखाती
मोहल्ले का शोर तो कभी रात का सन्नाटा सुनाती ये खिड़कियाँ

सुबह की धूप खिलती है यहाँ पर
हवाओं का झोका लाती है यह खिड़कियाँ

रेल की सीटी- गाडी का हॉर्न- साइकिल की घंटी
फेरीवाले की आवाज़ सुनाती है यह खिड़कियां

छोटू की शादी का हुड़दंग हो या होली के रंग
यह खिड़कियाँ ही दिखाती है जब ईद दिवाली में होते हैं सब संग

जब किसी बुज़ुर्ग के मरने का हो रोना
इन्ही खिड़कियों से दिखता है कफ़न का कोना

हंसती भी है रुलाती भी हैं ये खिड़कियाँ
इन पुरानी दीवारों से झांकती ये खिड़कियाँ

सोमवार, 7 सितंबर 2015

फिर !!




फिर ख्वाब अधूरे छूट गए

फिर कोई तनहा रह गया,

फिर तेरी यादों के समुन्दर में

कोई सपना बह गया !!


मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

मेरी राहाँ




मेरी राहाँ नू रौशन करन वाले नूर भुज गए,
मेरी सांसां नू महकान वाले फुल झुक गए

तक तक वेखां मुंडेर ते बैके
आया न कोई संदेसा लैके
बन्ने बैठा, चबारे बैठा
दिन ते ढल्या,
रत दे सितारे वि लुक गए !!
मेरी राहाँ नू रौशन करन वाले नूर भुज गए,


सूरत नु तेरी दिल विच वसा के
वेखां मैं झाती पा के
सोंदे वेखां, जगदे वेखां
वेख वेख अखां दे हंजु सुक गए !!
मेरी राहाँ नू रौशन करन वाले नूर भुज गए,


बेकदरी हो गई प्यार दी मेरी
फिकर ना पई तैनू मेरी
झोलियाँ अड्ड अड्ड रब्बों मंगां
मेरी दुआवां दे असर मुक गए !!
मेरी राहाँ नू रौशन करन वाले नूर भुज गए,


देर ना कर फिर छेती आजा
चन्न वरगा मुखडा विखा जा
अग्गे मैं हां, पिच्छे साया
हुन ते सान्सा दे वि पैर रुक गए !!

मेरी राहाँ नू रौशन करन वाले नूर भुज गए,
मेरी सांसां नू महकान वाले फुल झुक गए